नमस्कार दोस्तों आज के पोस्ट में हम Rajdharm kahani class 7, राज धर्म (जातक कहानी) लेकर आये हैं, महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व शाक्य गणराज्य में कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी नामक स्थान पर हुआ था। जातक कथाओं में बोधिसत्त्व के नाम से विभिन्न रूपों में उनके पूर्व जन्मों का उल्लेख किया गया है। प्रस्तुत पाठ 'राजधर्म' में ऐसी ही एक जातक कथा दी जा रही है। इस कथा में बताया गया है कि किसी राज्य का राजा जैसा आचरण करता है उसका प्रभाव उस राज्य की प्रजा के साथ सम्पूर्ण पर्यावरण पर भी पड़ता है। तो चलिए कहानी कि शुरुवात करते हैं और पढ़ते हैं राजधर्म कक्षा -7, Rajdharm kahani pdf, राजधर्म कहानी
Rajdharm Kahani Class 7 | राजधर्म (जातक कहानी)
ब्रह्मदत्त विवेकशील राजा था। वह सत्यासत्य, उचित-अनुचित का सदा ध्यान रखता था। वह ऐसे व्यक्ति को ढूँढ़ता था, जो उसके दोषों को बता सके। प्रशंसा करने वाले तो सभी थे, दोष बताने वाला कोई नहीं मिलता था। अन्तःपुर, राजदरबार, नगर, नगर के बाहर सभी जगह लोग राजा के गुणों का बखान करते थे, पर उसके अवगुण बताने वाला कोई नहीं था।
राजा ने सोचा कि जनपद में कोई ऐसा व्यक्ति मिल जाय, जो उसके दोष बता सके। अतः वेश बदलकर वह पूरे जनपद में घूमा, पर वहाँ भी उसे अपना गुण ही सुनने को मिला, दोष नहीं, फिर वह घूमता हुआ हिमालय प्रदेश पहुँचा। घने जंगलों और दुर्गम पर्वतों को पार करता हुआ वह सुरम्य हिमालय प्रदेश में स्थित बोधिसत्त्व के आश्रम पर जा पहुँचा। उसने उन्हें श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया। बोधिसत्त्व ने राजा का कुशल क्षेम पूछा, फिर आश्रम में राजा एक ओर चुपचाप बैठ गया।
बोधिसत्त्व जंगल से पके गोदे लाकर खाते थे। वे गोदे शक्तिवर्धक और शक्कर के समान मीठे थे। उन्हां ने राजा को सम्बोधित कर कहा, "महापुण्य, ये गोदे खाकर पानी पीओ " राजा ने गोदे खाये और पानी पिया। उसे गोदे बड़े मधुर और स्वादिष्ट लगेो उसने बोधिसत्त्व से पूछा, "भन्ते क्या बात है, ये गोदे बड़े मीठे और स्वादिष्ट है !"
"महापुण्य, राजा निश्चय ही धर्मानुसार और न्यायपूर्वक राज करता है, उसी से ये इतने मीठे हैं। राजा के अधार्मिक और अन्यायी होने पर तेल, मधु, शक्कर आदि तथा जंगल के फल-फूल सभी कड़वे और स्वादहीन हो जाते हैं। केवल यही नहीं सारा राष्ट्र ओजरहित हो जाता है, दूषित हो जाता है। राजा के धार्मिक और न्यायप्रिय होने पर सभी वस्तुएँ मधुर और शक्तिवर्धक होती हैं और सारा राष्ट्र शक्तिशाली तथा ओजस्वी बना रहता है।"
"भन्ते, ऐसा होता होगा", यह कह कर राजा अपना परिचय दिये बिना ही बोधिसत्त्व को प्रणाम कर अपनी राजधानी लौट आया। उसने सोचा, तपस्वी बोधिसत्त्व के कथन की परीक्षा करूँगा। अधर्म और अन्याय से राज करूँगा, देखें गा कि बोधिसत्त्व की बात में कितनी सच्चाई है। राजा ने ऐसा ही किया। कुछ समय बीत जाने पर वह फिर बोधिसत्त्व के आश्रम में पहुँचा और उन्हें प्रणाम कर एक ओर बैठ गया।
बोधिसत्त्व ने फिर पके गोदे दिये। राजा को वे गोदे बड़े कड़वे लगे। राजा ने गोदे थूक दिये और कहा, "भन्ते, ये बड़े कड़वे हैं।"
"महापुण्य, राजा अवश्य अधार्मिक और अन्यायी होगा। राजा के अधार्मिक और अन्यायी होने पर जंगल के फल-फूल तथा सभी वस्तुएँ नीरस और कड़वी हो जाती हैं, स्वादरहित हो जाती हैं, यही नहीं सारा राष्ट्र ओजरहित हो जाता है।"
राजा के और जिज्ञासा करने पर बोधिसत्त्व ने कहा, "गायों के नदी तैरते समय बैल (नेता) यदि टेढ़ा जाता है तो नेता के टेढ़े जाने के कारण सभी गायें टेढ़ी जाती हैं और मार्ग से भटक जाती हैं। इसी प्रकार मनुष्यों में भी जो श्रेष्ठ होता है, वह नेता माना जाता है। यदि वह टेढ़े मार्ग से जाता है, अधर्म करता है तो सारी प्रजा कुमार्ग पर चलती है और अधर्म करने लगती है।
राजा ही नेता होता है। राजा के धर्म विमुख होने पर सारा राज्य दुःख को प्राप्त होता है। गायों के नदी पार करते समय यदि बैल (नेता) सीधा जाता है तो नेता के सीधा जाने के कारण सभी गाय सीधी जाती हैं और नदी पार कर जाती हैं। इसी प्रकार मनुष्यों में जो श्रेष्ठ माना जाता है, वही नेता माना जाता है।
यदि वह धर्म का अनुसरण करता है, तो शेष प्रजा भी धर्म का मार्ग अपनाती है। राजा के धार्मिक होने पर सारा राष्ट्र सुख को प्राप्त करता है।"
बोधिसत्त्व से यह शिक्षा प्राप्त कर राजा ने अपना राजा होना प्रकट किया और विनयपूर्वक बोला, "भन्ते, मैंने ही पहले गोदों को मीठा कर फिर कड़वा किया। अब फिर उन्हें मीठा करूँगा और कभी उन्हें कड़वा नहीं होने दूंगा। यही मेरा संकल्प और व्रत है।"
बोधिसत्त्व को प्रणाम कर वह राजधानी लौट आया। वह धर्म और न्यायपूर्वक राज्य करने लगा। उसका राज्य फिर धन-धान्य से भर गया।
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