Kaki Story in Hindi | सियारामशरण गुप्त रचित कहानी काकी

नमस्कार दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम Kaki Story in Hindi | सियारामशरण गुप्त रचित कहानी काकी लेकर आये हैं इस कहानी में एक अबोध बालक का अपनी माँ के प्रति गहरा प्रेम प्रकट हुआ है। तो आइये बिना देरी के पोस्ट कि शुरुवात करते हैं और पढ़ते हैं kaki Hindi Story by Siyaramsharan Gupt, सियारामशरण गुप्त काकी कहानी, कहानी काकी

Kaki Story in Hindi

 

Kaki Story in Hindi | सियारामशरण गुप्त रचित कहानी काकी

उस दिन बड़े सवेरे श्यामू की नींद खुली तो उसने देखा घर भर में कुहराम मचा हुआ है। उसकी माँ नीचे से ऊपर तक एक कपड़ा ओढ़े हुए कम्बल पर भूमि-शयन कर रही है और घर के सब लोग उसे घेर कर बड़े करुण स्वर में विलाप कर रहे हैं।

लोग जब उसकी माँ को श्मशान ले जाने के लिए उठाने लगे, तब श्यामू ने बड़ा उपद्रव मचाया। लोगों के हाथ से छूटकर वह माँ के ऊपर जा गिरा। बोला, काकी सो रही है। इसे इस तरह उठा कर कहाँ ले जा रहे हो? मैं इसे न ले जाने दूँगा।

लोगों ने बड़ी कठिनाई से उसे हटाया। काकी के अग्नि-संस्कार में भी वह न जा सका। एक दासी राम-राम करके उसे घर पर ही सँभाले रही।

यद्यपि बुद्धिमान गुरुजनों ने उसे विश्वास दिलाया कि उसकी काकी उसके मामा के यहाँ गयी है, परन्तु यह बात उससे छिपी न रह सकी कि काकी और कहीं नहीं ऊपर राम के यहाँ गयी है। काकी के लिए कई दिन लगातार रोते-रोते उसका रुदन तो धीरे-धीरे शान्त हो गया, परन्तु शोक शान्त न हो सका। वह प्रायः अकेला बैठा-बैठा शून्य मन से आकाश की ओर ताका करता।

एक दिन उसने ऊपर एक पतंग उड़ती देखी न जाने क्या सोचकर उसका हृदय एकदम खिल उठा। पिता के पास जाकर बोला, 'काका, मुझे एक पतंग मँगा दो, अभी मँगादो।'

पन्नी की मृत्यु के बाद से विश्वेश्वर बहुत अनमने से रहते थे। 'अच्छा मँगा दूँगा,

कहकर वे उदास भाव से और कहीं चले गये। श्यामू पतंग के लिए बहुत उत्कंठित था। वह अपनी इच्छा को किसी तरह न रोक सका। एक जगह खूँटी पर विश्वेश्वर का कोट टँगा था।

इधर-उधर देखकर उसके पास स्टूल सरका कर रखा और ऊपर चढ़कर कोट की जेबें टटोली एक चवन्नी पाकर वह तुरन्त वहाँ से भाग गया। सुखिया दासी का लड़का भोला, श्यामू का साथी था। श्यामू ने उसे चवन्नी देकर कहा,

'अपनी जीजी से कहकर गुपचुप एक पतंग और डोर मँगा दो। देखो अकेले में लाना कोई जान न पायो' पतंग आयी। एक अँधेरे घर में उसमें डोर बाँधी जाने लगी। श्यामू ने धीरे से कहा,

'भोला, किसी से न कहो तो एक बात कहूँ।' भोला ने सिर हिलाकर कहा' नहीं, किसी से न कहूँगा।'

श्यामू ने रहस्य खोला, 'मैं यह पतंग ऊपर राम के यहाँ भेजूंगा। इसको पकड़ कर काकी नीचे उतरेगी। मैं लिखना नहीं जानता नहीं तो इस पर उसका नाम लिख देता।

भोला श्यामू से अधिक समझदार था। उसने कहा, 'बात तो बहुत अच्छी सोची, परन्तु एक कठिनाई है। यह डोर पतली है। इसे पकड़ कर काकी उतर नहीं सकती। इसके टूट जाने का डर है। पतंग में मोटी रस्सी हो तो सब ठीक हो जाये।'
श्यामू गम्भीर हो गया।

मतलब यह बात लाख रुपये की सुझायी गयी, परन्तु कठिनाई यह थी कि मोटी रस्सी कैसे मँगायी जाय। पास में दाम है नहीं और घर के जो आदमी उसकी काकी को बिना ट्‌या-मया के जला आये हैं, वे उसे इस काम के लिए कुछ देंगे नहीं। उस दिन श्यामू को चिन्ता के मारे बड़ी रात तक नींद नहीं आयी।

पहले दिन की ही तरकीब से दूसरे दिन फिर उसने पिता के कोट से एक रुपया निकाला। ले जाकर भोला को दिया और बोला, 'देख भोला, किसी को मालूम न होने पाये। अच्छी-अच्छी दो रस्सियाँ मँगा दे।

एक रस्सी छोटी पड़ेगी। जवाहिर भैया से मैं एक कागज पर 'काकी लिखवा लूँगा। नाम लिखा रहेगा तो पतंग ठीक उन्हीं के पास पहुँच जायेगी।'

दो घंटे बाद प्रफुल्ल मन से श्यामू और भोला अँधेरी कोठरी में बैठे हुए पतंग में रस्सी बाँध रहे थे। अकस्मात् उग्र रूप धारण किये हुए विश्वेश्वर शुभ कार्य मं विघ्न की तरह वहँा जा घुसे। भोला और श्यामू को धमका कर बोले- 'तुमने हमारे कोट से रुपया निकाला है?'

भोला एक ही डाँट में मुखबिर हो गया। बोला, 'श्यामू भैया ने रस्सी और पतंग मँगाने के लिए निकाला था।'
विश्वेश्वर ने श्यामू को दो तमाचे जड़कर कहा, 'चोरी सीख कर जेल जायेगा! अच्छा, तुझे आज अच्छी तरह बताता हूँ।'

कहकर कई तमाचे जड़े और कान मलने के बाद पतंग फाड़ डाली। अब रस्सियां की ओर देखकर पूछा 'ये किसने मँगायी।'

भोला ने कहा, 'इन्होंने मँगायी थी। कहते थे, इससे पतंग तानकर काकी को राम के यहाँ से नीचे उतारेंगे।'
विश्वेश्वर हतबु‌द्धि होकर वहीं खड़े रह गये। उन्होंने फटी हुई पतंग उठाकर देखी। उस पर चिपके हुए कागज पर लिखा था. ………….काकी।

लेखक: सियारामशरण गुप्त

Conclusion

सियारामशरण गुप्त का जन्म 4 सितम्बर सन् 1895 ई0 को चिरगाँव झाँसी में हुआ। इन्होंने अनेक कविता-संग्रह, उपन्यास और निबन्धां की रचना की है। इनके उपन्यासों में नारी की सहनशीलता, आदर्श और सरलता है। इनकी प्रसिद्ध रचनाएँ- मौर्य विजय, 'दूर्वादल 'आत्मोत्सर्ग 'गोद', 'नारी आदि हैं। 29 मार्च सन् 1963 को इनका देहावसान हो गया।

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