Idgah Story by Munshi Premchand in Hindi | ईदगाह कहानी हिंदी

 नमस्कार दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम Idgah Story by Munshi Premchand in Hindi, ईदगाह कहानी हिंदी में लेकर आये हैं इस कहानी 'ईदगाह में लेखक ने बाल-मनोविज्ञान का सुन्दर चित्रण करते हुए बालक हामिद के प्रति दादी के वात्सल्य को और दादी के प्रति हामिद के प्रगाढ़ प्रेम को दिखाया है। तो आइये बिना विलम्ब पोस्ट कि शुरुवात करते हैं और पढ़ते हैं ईदगाह' कहानी हिंदी Class 8, idgah story in hindi, मुंशी प्रेमचंद की कहानी: ईदगाह

ईदगाह कहानी हिंदी

Idgah Story by Munshi Premchand in Hindi | ईदगाह कहानी हिंदी

(1)
रमजान के पूरे तीस रोजों के बाद आज ईद आयी है। कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभात है। वृक्षों पर कुछ अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है। आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है, मानो संसार को ईद की बधाई दे रहा है। गाँव में कितनी हलचल है। ईदगाह जाने की तैयारियाँ हो रही हैं। किसी के कुरते में बटन नहीं है। पड़ोस के घर से सूई- धागा लेने दौड़ा जा रहा है। किसी के जूते कड़े हो गये हैं। उनमें तेल डालने के लिए तेली के घर भागा जाता है। जल्दी-जल्दी बैलों को सानी-पानी दे दें।

ईदगाह से लॉटते-लॉटते दोपहर हो जायेगी। तीन कोस का पैदल रास्ता, फिर सैकड़ों आद‌मियों से मिलना-भेंटना। दोपहर के पहले लॉटना असम्भव है। लड़के सबसे ज्यादा प्रसन्न हैं। किसी ने एक रोजा रखा है, वह भी दोपहर तक, किसी ने वह भी नहीं, लेकिन ईदगाह जाने की खुशी उनके हिस्से की चीज है। रोजे बड़े-बूढ़ों के लिए होंगे। इनके लिए तो ईद है। रोज ईद का नाम रटते थे। आज वह आ गयी। अब जल्दी पड़ी है कि लोग ईदगाह क्यों नहीं चलते। इन्हें गृहस्थी की चिन्ताओं से क्या प्रयोजन? सेवँड्यों के लिए दूध और शक्कर घर में है या नहीं, इनकी बला से ये तो सेवँड्याँ खायेंगे।

वह क्या जाने कि अब्बाजान क्यों बदहवास चैधरी कायमअली के घर दौड़े जा रहे हैं। उन्हें क्या खबर कि चैधरी आज आँखे बदल लें तो यह सारी ईद मुहर्रम हो जाय ? उनकी अपनी जेबों में तो कुबेर का धन भरा हुआ है। बार-बार जेब से अपना खजाना निकाल कर गिनते हैं और खुश होकर फिर रख लेते हैं। महमूद गिनता है, एक-दो, दस-बारह। उसके पास बारह पैसे हैं।

मोहसिन के पास एक, दो, तीन, आठ, नाँ, पन्द्रह पैसे हैं। इन्हीं अनगिनती पैसों में अनगिनत चीजें लायेंगे- खिलौने, मिठाइयाँ, बिगुल, गेंद और न जाने क्या-क्या ? और सबसे ज्यादा प्रसन्न है हामिद। वह चार- पाँच साल का गरीब सूरत, दुबला-पतला लड़का, जिसका बाप गत-वर्ष हैजे की भेंट हो गया और माँ न जाने क्यों पीली होती होती एक दिन मर गयी। किसी को पता न चला, क्या बीमारी है। कहती भी तो कौन सुनने वाला था। दिल पर जो कुछ बीतती थी, वह दिल में ही सहती थी और जब न सहा गया तो संसार से विदा हो गयी। अब हामिद अपनी बूढ़ी दादी अमीना की गोद में सोता है और उतना ही प्रसन्न है।

उसके अब्बाजान रुपये कमाने गये हैं। बहुत-सी थैलियाँ लेकर आयेंगे। अम्मीजान अल्लाह मियाँ के घर से उसके लिए बड़ी-बड़ी चीजें लाने गयी है, इसलिए हामिद प्रसन्न है और फिर बच्चों की आशा। उनकी कल्पना तो राई का पर्वत बना लेती है। हामिद के पाँव में जूते नहीं हैं, सिर पर एक पुरानी-धुरानी टोपी है, जिसका गोट काला पड़ गया है, फिर भी वह प्रसन्न है। अब उसके अब्बाजान थैलियाँ और अम्मीजान नियामतें लेकर आयेंगी, तो वह दिल के अरमान निकाल लेगा। तब देखेगा महमूद, मोहसिन, नूरे और सम्मी कहाँ से उतने पैसे निकालेंगे।

अभागिन अमीना अपनी कोठरी में बैठी रो रही है। आज ईद का दिन और उसके घर में दाना नहीं। आज आबिद होता तो क्या इसी तरह ईद आती और चली जाती। इस अन्धकार और निराशा में वह डूबी जा रही थी। किसने बुलाया था इस निगोड़ी ईद को। इस घर में उसका काम नहीं है, लेकिन हामिद। उसे किसी के मरने-जीने से क्या मतलब ? उसके अन्दर प्रकाश है, बाहर आशा विपत्ति अपना सारा दल-बल लेकर आये, हामिद की आनन्द-भरी चितवन उसका विध्वंस कर देगी।

हामिद भीतर जाकर दादी से कहता है- तुम डरना नहीं अम्मा में सबसे पहले आऊँगा। बिल्कुल न डरना।

अमीना का दिल कचोट रहा है। गाँव के बच्चे अपने-अपने बाप के साथ जा रहे हैं। हामिद के बाप अमीना के सिवा और कॉन है। उसे कैसे अकेले मेले जाने दे। उसी भीड़-भाड़ में बच्चा कहीं खो जाय तो क्या हो? नहीं, अमीना उसे यों न जाने देगी। नन्हीं-सी जाना तीन कोस चलेगा कैसे पैर में छाले पड़ जायेंगे। जूते भी तो नहीं है।

वह थोड़ी-थोड़ी दूर पर उसे गोद ले लेगी, लेकिन यहाँ सेवँड्याँ कॉन पकायेगा। पैसे होते तो लॉटते-लॉटते सब सामग्री जमा करके चटपट बना लेती। यहाँ तो घंटों चीजें जमा करते लगेंगे। माँगे ही का तो भरोसा ठहरा। उस दिन फहीमन के कपड़े सिये थे। आठ आने पैसे मिले थे। उस अठन्नी को ईमान की तरह बचाती चली आयी थी इसी ईद के लिए, लेकिन कल ग्वालन सिर पर सवार हो गयी तो क्या करती? हामिद के लिए कुछ नहीं है, तो दो पैसे का दूध तो चाहिए ही। अब तो कुल दो आने पैसे बच रहे हैं। तीन पैसे हामिद की जेब में, पाँच अमीना के बटुवे में।

गाँव से मेला चला और बच्चों के साथ हामिद भी जा रहा था। कभी सबके सब दौड़ कर आगे निकल जाते। फिर किसी पेड़ के नीचे खड़े होकर साथ वालों का इन्तजार करते। ये लोग क्यों इतना धीरे-धीरे चल रहे हैं। हामिद के पैरों में तो जैसे पर लग गये हैं। वह कभी थक सकता है? शहर का दामन आ गया।

बड़ी-बड़ी इमारतें आने लगीं, यह अदालत है, यह कॉलेज है, यह क्लब-घर है। इतने बड़े कॉलेज में कितने लड़के पढ़ते होंगे। सब लड़के नहीं हैं जी। बड़े-बड़े आदमी हैं, सच उनकी बड़ी-बड़ी मूँछे हैं। इतने बड़े हो गये, अभी पढ़ने जाते हैं। न जाने कब तक पढ़ेंगे और क्या करेंगे इतना पढ़ कर हामिद के मदरसे में दो-तीन बड़े-बड़े लड़के हैं, बिलकुल तीन कौड़ी, के रोज मार खाते हैं, काम से जी चुराने वाले। इस जगह भी उसी तरह के लोग होंगे और क्या ? क्लब-घर में जादू होता है। सुना है यहाँ मुर्दे की खोपड़ियाँ दौड़ती हैं और बड़े-बड़े तमाशे होते हैं, पर किसी को अन्दर नहीं जाने देते।

सहसा ईदगाह नजर आया। ऊपर इमली के घने वृक्षों की छाया। नीचे पक्का फर्श है, जिस पर जालिम बिछा हुआ है और रोजेदारों की पंक्तियाँ एक के पीछे एक न जाने कहाँ तक चली गयी हैं। पक्के जगत के नीचे तक, जहाँ जाजिम भी नहीं है। नये आने वाले आकर पीछे की कतार में खड़े हो जाते हैं। आगे जगह नहीं है।

यहाँ कोई धन और पद नहीं देखता। इस्लाम की नजर में सब बराबर हैं। इन ग्रामीणों ने भी वजू किया और पिछली पंक्ति में खड़े हो गये। कितना सुन्दर संचालन है, कितनी सुन्दर व्यवस्था ? लाखों सिर एक साथ सिजदे में झुक जाते हैं, फिर सब-के-सब एक साथ खड़े हो जाते हैं, एक साथ झुकते हैं और एक साथ घुटनों के बल बैठ जाते हैं। कई बार यही क्रिया होती है, जैसे बिजली की लाखों बत्तियाँ एक साथ प्रदीप्त हों और एक साथ बुझ जायें, और यही क्रम चलता रहे। कितना अपूर्व दृश्य था, जिसकी सामूहिक क्रियाएँ, विस्तार और अन्ततः हृदय को श्रद्धा, गर्व और आत्मानन्द से भर देती थीं, मानों भ्रातृत्व का एक सूत्र इन समस्त आत्माओं को एक लड़ी में पिरोये हुए है।

(2)

नमाज़ खत्म हो गयी है। लोग आपस में गले मिल रहे हैं। तब मिठाई और खिलौने की दुकानों पर धावा होता है। ग्रामीणों का यह दल इस विषय में बालकों से कम उत्साही नहीं हैं। यह देखो, हिंडोला है।

एक पैसा देकर चढ़ जाओ। कभी आसमान पर जाते हुए मालूम होंगे, कभी जमीन पर गिरते हुए। यह चर्खी है, लकड़ी के हाथी, घोड़े, ऊँट छड़ो से लटके हुए हैं। एक पैसा देकर बैठ जाओ और पच्चीस चक्करों का मजा लो। महमूद और मोहसिन और नूरे और सम्मी इन घोड़ों और ऊँटों पर बैठते हैं। हामिद दूर खड़ा है। तीन ही पैसे तो उसके पास हैं। अपने कोष का तिहाई जरा-सा-चक्कर खाने के लिए नहीं दे सकता।

सब चर्खियों से उतरते हैं। अब खिलौने लेंगे। इधर दुकानों की कतार लगी हुई है। तरह-तरह के खिलौने हैं- सिपाही और गुलरिया, राजा और वकील, भिश्ती और धोबिन और साधू वाह! कितने सुन्दर खिलौने हैं? अब बोलना ही चाहते हैं। महमूद सिपाही लेता है, खाकी वर्दी और लाल पगड़ी वाला, कन्धे पर बन्दूक रखे हुए।

मालूम होता है, अभी कवायद किये चला आ रहा है। मोहसिन को भिश्ती पसन्द आया। कमर झुकी है, ऊपर मशक रखे हुए है। मशक का मुँह एक हाथ से पकड़े हुए है। कितना प्रसन्न है? शायद कोई गीत गा रहा है। बस, मशक से पानी उड़ेलना ही चाहता है। नूरे को वकील से प्रेम है। कैसी विद्वत्ता है उसके मुख पर? काला चोंगा, नीचे सफेद अचकन, अचकन के सामने की जेब में घड़ी, सुनहरी जंजीर, एक हाथ में कानून का पोथा लिए हुए।

मालूम होता है, अभी किसी अदालत से जिरह या बहस किये चले आ रहे हैं। यह सब दो-दो पैसे के खिलौने हैं। हामिद के पास कुल तीन पॅसे हैं, इतने महँगे खिलौने वह कैसे ले? खिलौना कहीं हाथ से छूट पड़े तो चूर-चूर हो जाय। जरा पानी पड़े तो सारा रंग धुल जाय। ऐसे खिलौने लेकर वह क्या करेगा, किस काम के?

हामिद खिलौने की निन्दा करता है-- मिट्टी ही के तो हैं, गिरे तो चकनाचूर हो जायँ, लेकिन ललचायी हुई आँखों से खिलौने को देख रहा है और चाहता है कि जरा देर के लिए उन्हें हाथ में ले सकता। उसके हाथ अनायास ही लपकते हैं, लेकिन लड़के इतने त्यागी नहीं होते, विशेषकर जब अभी नया शौक है। हामिद ललचाता रह जाता है।

खिलॉने के बाद मिठाइयाँ आती हैं। किसी ने रेवड़ियाँ ली हैं, किसी ने गुलाबजामुन, किसी ने सोहनहलुआ। मजे से खा रहे हैं। हामिद उनकी बिरादरी से पृथक है। अभागे के पास तीन पैसे हैं। क्यों नहीं कुछ लेकर खाता? ललचायी आँखों से सबकी ओर देखता है।

मोहसिन कहता है -- हामिद रेवड़ी ले जा, कितनी खुशबूदार है।

हामिद को सन्देह हुआ, यह केवल क्रूर विनोद है, मोहसिन इतना उदार नहीं है, लेकिन यह जानकर भी वह उसके पास जाता है। मोहसिन दोने से एक रेवड़ी निकाल कर हामिद की ओर बढ़ाता है। हामिद हाथ फैलाता है। मोहसिन रेवड़ी अपने मुँह में रख लेता है। महमूद, नूरे और सम्मी खूब तालियाँ बजा-बजाकर हँसते हैं। हामिद खिसिया जाता है।

मोहसिन -- अच्छा, अबकी जरूर देंगे हामिद, अल्ला कसम, ले जाओ।
हामिद -- रखे रहो। क्या मेरे पास पैसे नहीं हैं।
सम्मी -- तीन ही पैसे तो हैं। तीन पैसे में क्या-क्या लोगे ?
महमूद -- हमसे गुलाब जामुन ले जाओ हामिद, मोहसिन बदमाश है।
हामिद -- मिठाई कॉन बड़ी नेमत है। किताब में इसकी कितनी बुराइयाँ लिखी हैं।
मोहसिन -- लेकिन दिल में कह रहे होंगे कि मिले तो खा लें। अपने पैसे क्यों नही निकालते?

महमूद -- हम समझते हैं इसकी चालाकी जब हमारे सारे पैसे खर्च हो जायेंगे, तो हमे ललचा-ललचाकर खायेगा।
मिठाइयों के बाद कुछ दुकानें लोहे की चीजों की हैं। कुछ गिलट और कुछ नकली गहनों की लड़कों के लिए यहाँ कोई आकर्षण नहीं था। वह सब आगे बढ़ जाते हैं। हामिद लोहे की दुकान पर रुक जाता है। कई चिमटे रखे हुए थे। उसे ख्याल आया, दादी के पास चिमटा नहीं है। तवे से रोटियाँ उतारती हैं, तो हाथ जल जाता है, अगर वह चिमटा ले जाकर दादी को दे दे, तो वह कितनी प्रसन्न होंगी। फिर उनकी उँगलियाँ कभी न जलेंगी। घर में एक काम की चीज हो जायेगी। खिलौने से क्या फायदा?

हामिद के साथी आगे बढ़ गये हैं। सबील पर सब-के-सब शरबत पी रहे हैं। देखो, सब कितने लालची है? इतनी मिठाइयाँ लीं, मुझे किसी ने एक भी न दी। उस पर कहते हैं, मेरे साथ खेलो। मेरा यह काम करो। अब अगर किसी ने कोई काम करने को कहा, तो पूछेंगा। खायें मिठाइयाँ आप मुँह सड़ेगा, फोड़े-फुन्सियाँ निकलेगी, आप ही जबान चटोरी हो जायेगी। सब-के-सब खूब हँसेंगे कि हामिद ने चिमटा लिया है। हँसें। मेरी बला से। उसने दुकानदार से पूछा- यह चिमटा कितने का है?

दुकानदार ने उसकी ओर देखा और कोई आदमी साथ न देख कर कहा-- यह तुम्हारे काम का नहीं है जी!
-बिकाऊ क्यों नहीं है? और यहाँ क्यों लाद लाये हैं?
-बिकाऊ है क्यों नहीं?
-तो बताते क्यों नहीं, के पैसे का है?
-छह पैसे लगेंगे।
हामिद का दिल बैठ गया।

-ठीक-ठीक पाँच पैसे लगेंगे, लेना हो तो लो, नहीं चलते बनो हामिद ने कलेजा मजबूत करके कहा--तीन पैसे लोगे।
यह कहता हुआ वह आगे बढ़ गया कि दुकानदार की घुड़कियाँ न सुने। लेकिन दुकानदार ने घुड़‌कियाँ नहीं दीं। बुलाकर चिमटा दे दिया। हामिद ने उसे इस तरह कन्धे पर रखा, मानो बन्दूक है और शान से अकड़ता हुआ संगियों के पास आया। जरा सुनें, सब-के-सब क्या-क्या आलोचनाएँ करते हैं।

मोहसिन ने हँसकर कहा-- यह चिमटा क्यों लाया पगले ? इसे क्या करेगा? हामिद ने चिमटे को जमीन पर पटक कर कहा- जरा अपना भिश्ती जमीन पर गिरा दो। सारी पसलियाँ चूर-चूर हो जायँ बच्चा की।

महमूद बोला-- तो यह चिमटा कोई खिलौना है।

हामिद-- खिलौना क्यों नहीं। अभी कन्धे पर रखा बन्दूक हो गयी। हाथ में लिया, फकीरों का चिमटा हो गया। चाहूँ तो इससे मजीरे का काम ले सकता हूँ। एक चिमटा जमा दूँ तो तुम लोगों के सारे खिलौनों की जान निकल जाय। तुम्हारे खिलौने कितना ही जोर लगावें, वे मेरे चिमटे का बाल भी बाँका नहीं कर सकते। मेरा बहादुर शेर हैं-- चिमटा

सम्मी ने खंजरी ली थी। प्रभावित होकर बोला- मेरी खंजरी से बदलोगे। दो आने की है।

हामिद ने खंजरी की ओर उपेक्षा से देखा-मेरा चिमटा चाहे तो तुम्हारी खंजरी का पेट फाड़ डाले। बस, एक चमड़े की झिल्ली लगा दी, ढब-ढब बोलने लगी जरा-सा पानी लग जाय तो खतम हो जाय। मेरा बहादुर चिमटा, आग में, पानी में, तूफान में बराबर डटा खड़ा रहेगा।

चिमटे ने सभी को मोहित कर लिया, लेकिन अब पैसे किसके पास धरे हैं। फिर मेले से दूर निकल आये हैं, नौ कब के बज गये, धूप तेज हो रही है। घर पहुँचने की जल्दी हो रही है। बाप से जिद भी करें, तो चिमटा नहीं मिल सकता है। हामिद है बड़ा चालाक। इसीलिए बदमाश ने अपने पैसे बचा रखे थे।

अब बालकों के दो दल हो गये हैं। मोहसिन, महमूद, सम्मी और नूरे एक तरफ हैं, हामिद अकेला दूसरी तरफ। शास्त्रार्थ हो रहा है।

मोहसिन ने एड़ी-चोटी का जोर लगा कर कहा-- अच्छा पानी तो नहीं भर सकता।

हामिद ने चिमटे को सीधा खड़ा करके कहा-- भिश्ती को एक डाँट लगायेगा, तो दौड़ा हुआ पानी लाकर द्वार में छिड़कने लगेगा।

मोहसिन परास्त हो गया पर महमूद ने कुमुक पहुँचायी अगर बच्चा पकड़ जायें तो अदालत में बँधे-बँधे फिरेंगे। तब तो वकील साहब के ही पैर पड़ेंगे।

हामिद इस प्रबल तर्क का जबाब न दे सका। उसने पूछा- हमें पकड़ने कॉन आयेगा?

नूरे ने अकड़ कर कहा-- यह सिपाही बन्दूक वाला।
हामिद ने मुँह चिढ़ाकर कहा, यह बेचारे हम बहादुर रुस्तम-ए-हिन्द को पकड़ेंगे। अच्छा लाओ अभी जरा कुश्ती हो जाय। इसकी सूरत देखकर दूर से भागेंगे। पकड़ेंगे क्या बेचारे ?

मोहसिन को एक नयी चोट सूझ गयी- तुम्हारे चिमटे का मुँह रोज आग में जलेगा।

उसने समझा था कि हामिद लाजवाब हो जायेगाः लेकिन यह बात न हुई। हामिद ने तुरन्त जवाब दिया-- आग में बहादुर ही कूदते हैं जनाब, आग में कूदना वह काम है, जो यह रुस्तमें-हिन्द ही कर सकता है।

महमूद ने एक जोर लगाया- वकील साहब कुर्सी-मेज पर बैठेंगे, तुम्हारा चिमटा तो बावर्चीखाने में जमीन पर पड़ा रहेगा।

इस तर्क ने सम्मी और नूरे को भी सजीव कर दिया। कितने ठिकाने की बात कही है पट्टे ने? चिमटा बावरचीखाने में पड़े रहने के सिवा और क्या कर सकता है।

हामिद को कोई फड़कता हुआ जवाब न सूझा तो उसने धाँधली शुरू की - मेरा चिमटा बावरचीखाने में नहीं रहेगा। वकील साहब कुर्सी पर बैठेंगे तो जाकर उन्हे जमीन पर पटक देगा और उनका कानून उनके पेट में डाल देगा।
बात कुछ बनी नहीं खासी गाली-गलौज थी।

कानून को पेट में डालने वाली बात छा गयी। ऐसी छा गयी कि तीनों शूरमा मुँह ताकते रह गये, मानो कोई धेलचा कनकौआ किसी गंडेवाले कनकौए को काट गया हो। कानून मुँह से बाहर निकलने वाली चीज है। उसको पेट के अन्दर डाल दिया जावे, बेतुकी-सी बात होने पर भी कुछ नयापन रखती है। हामिद ने मैदान मार लिया। उसका चिमटा रुस्तमे-हिन्द है। अब इसमें मोहसिन, महमूद, नूरे, सम्मी किसी को भी आपत्ति नहीं हो सकती

विजेता को हारने वालों से जो सत्कार मिलना स्वाभाविक है, वह हामिद को भी मिला। औरों ने तीन-तीन, चार-चार आने पैसे खर्च कियेः पर कोई काम की चीज न ले सके। हामिद ने तीन पैसे मंळे रंग जमा लिया। सच ही तो है, खिलौनों का क्या भरोसा ? टूट-फूट जायेंगे। हामिद का चिमटा बना रहेगा बरसों

सन्धि की शर्त तय होने लगी। मोहसिन ने कहा- जरा अपना चिमटा दो, हम भी देखें, तुम हमारा भिश्ती लेकर देखो।

महमूद और नूरे ने भी अपने-अपने खिलौने पेश किये।
हामिद को इन शर्तों के मानने में कोई आपत्ति न थी। चिमटा बारी-बारी से सबके हाथ में गया और उनके खिलॉने बारी-बारी से हामिद के हाथ में आये। कितने खूबसूरत खिलौने हैं।

हामिद ने हारने वाले के आँसू पोंछे-- मैं तुम्हें चिढ़ा रहा था, सच! यह लोहे का चिमटा भला इन खिलौनों की क्या बराबरी करेगा? मालूम होता है अब बोले, अब बोले।
लेकिन मोहसिन की पार्टी को इस दिलासे से सन्तोष नहीं होता। चिमटे का सिक्का खूब बैठ गया है। चिपका हुआ टिकट पानी से नहीं छूट रहा है।

मोहसिन -- लेकिन इन खिलौनों के लिए कोई हमें दुआ तो न देगा।

महमूद -- दुआ के लिए फिरते हैं। उल्टे मार न पड़े। अम्माँ जरूर कहेंगी कि मेले में मिट्टी के खिलौने तुम्हें मिले।
हामिद को स्वीकार करना पड़ा कि खिलौनों को देखकर किसी की मँा इतनी खुश न होंगी, जितनी दादी चिमटे को देखकर होंगी। तीन पैसों में ही तो उसे सब कुछ करना था और उन पैसों के इस उपयोग पर पछतावे की बिल्कुल जरूरत न थी। फिर अब तो चिमटा रुस्तमे-हिन्द है और सभी खिलौनों का बादशाह।

रास्ते में महमूद को भूख लगी। उसके बाप ने केले खाने को दिये। महमूद ने केवल हामिद को साझी बनाया। उसके अन्य मित्र मुँह ताकते रह गये। यह उस चिमटे का प्रसाद था।

(3)

ग्यारह बजे सारे गाँव में हलचल मच गयी। मेले वाले आ गये। मोहसिन की छोटी बहन ने दौड़कर भिश्ती उसके हाथ से छीन लिया और मारे खुशी के जो उछली, तो मियाँ भिश्ती नीचे आ गिरे और सुरलोक सिधारे। इस पर भाई-बहिन में मार-पीट हुई। दोनों खूब रोये। उनकी अम्मा यह शोर सुनकर बिगड़ीं और दोनों को ऊपर से दो-दो चांटे और लगाये।

मियाँ नूरे के वकील का अन्त उसके प्रतिष्ठानुकूल इससे ज्यादा गौरवमय हुआ। वकील जमीन पर या ताक पर तो नहीं बैठ सकता। उसकी मर्यादा का विचार तो करना ही होगा। दीवार में दो खूटियाँ गाड़ी गयीं। उन पर एक लकड़ी का पटश रखा गया।

पटरे पर कागज का कालीन बिछाया गया। वकील साहब राजा भोज की भाँति सिंहासन पर विराजे नूरे ने उन्हें पंखा झलना शुरू किया। अदालतों में खस की टट्टियाँ और बिजली के पंखे रहते हैं। क्या यहाँ मामूली पंखा भी न हो। कानून की गरमी दिमाग पर चढ़ जायेगी कि नहीं। बाँस का पंखा आया और नूरे हवा करने लगे। मालूम नहीं, पंखे की हवा से या पंखे की चोट से वकील साहब स्वर्गलोक से मर्त्यलोक में आ रहे और उनका माटी का चोला माटी में मिल गया। फिर बड़े जोर- शोर से मातम हुआ और वकील साहब की अस्थि घूरे पर डाल दी गयी।

अब रहा महमूद का सिपाही उसे चटपट गाँव का पहरा देने का चार्ज मिल गया, लेकिन पुलिस का सिपाही कोई साधारण व्यक्ति तो था नहीं, जो अपने पैरों चले। वह पालकी पर चलेगा। एक टोकरी आयी, उसमें कुछ लाल रंग के फटे-पुराने चिथड़े बिछाये गये, जिसमें सिपाही साहब आराम से लेटें।

नूरे ने यह टोकरी उठायी और अपने द्वार का चक्कर लगाने लगे। उनके दोनों छोटे भाई सिपाही की तरफ से 'छोनेवाले, जागते लहो पुकारते चलते हैं। मगर रात तो अँधेरी ही होनी चाहिए। महमूद को ठोकर लग जाती है। टोकरी उसके हाथ से छूटकर गिर पड़ती है और मियाँ सिपाही अपनी बन्दूक लिये जमीन पर आ जाते हैं और उनकी एक टाँग में विकार आ जाता है।

महमूद को आज ज्ञात हुआ कि वह अच्छा डॉक्टर है। उसको ऐसा मरहम मिल गया है, जिससे वह टूटी टाँग को आनन-फानन जोड़ सकता है। गूलर का दूध आता है। टाँग जोड़ दी जाती हैं, लेकिन सिपाही को ज्यों ही खड़ा किया जाता है, टाँग जवाब दे जाती है। शल्य क्रिया असफल हुई, तब उसकी दूसरी टाँग भी तोड़ दी जाती है। अब कम से कम एक जगह आराम से बैठ तो सकता है।

अब मियाँ हामिद का हाल सुनिए। अमीना उसकी आवाज सुनते ही दौड़ी और उसेगोद में उठाकर प्यार करने लगी। सहसा उसके हाथ में चिमटा देखकर वह चाँकी।

  • यह चिमटा कहाँ था ?
  • मैंने मोल लिया है।
    -के पैसे में?
    -तीन पैसे में

अमीना ने छाती पीट ली। यह कैसा बेसमझ लड़का है कि दो पहर हुआ, कुछ खाया न पिया। लाया क्या यह चिमटा। सारे मेले में तुझे और कोई चीज न मिली, जो यह लोहे का चिमटा उठा लाया।

हामिद ने अपराधी भाव से कहा-- तुम्हारी उँगलियाँ तवे से जल जाती थीं, इसलिए मैंने इसे ले लिया।

बुढ़िया का क्रोध तुरन्त स्नेह में बदल गया, और स्नेह भी वह नहीं, जो प्रगल्भ होता है और अपनी सारी कसक शब्दों में बिखेर देता है। यह मूक स्नेह था, खूब ठोस, रस और स्वाद से भरा हुआ। बच्चे में कितना त्याग, कितना सद्भाव और कितना विवेक है। दूसरों को खिलॉने लेते और मिठाई खाते देखकर इसका मन कितना ललचाया होगा! इतना जब्त इससे हुआ कैसे। वहाँ भी इसे अपनी बुढ़िया दादी की याद बनी रही। अमीना का मन गद्गद् हो गया।

और अब एक बड़ी विचित्र बात हुई। हामिद के इस चिमटे से भी विचित्र बच्चे हामिद ने बूढ़े हामिद का पार्ट खेला था। बुढ़िया अमीना बालिका अमीना बन गयी। वह रोने लगी। दामन फैलाकर हामिद को दुआएँ देती जाती थी और आँसू की बड़ी-बड़ी बूँदें गिराती जाती थी। हामिद इसका रहस्य क्या समझता।

लेखक: मुंशी प्रेमचन्द

Conclusion

प्रेमचन्द का जन्म सन् 1880 ई0 में लमही, वाराणसी में हुआ था। ये कहानी और उपन्यास सम्राट के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं- 'सेवासदन', 'निर्मला', 'रंगभूमि', 'कर्मभूमि', 'गबन', 'गोदान' आदि। इनकी कहानियों का संग्रह' मानसरोवर' नाम से आठ भागों में प्रकाशित है। इनका साहित्य समाज सुधार, राष्ट्रीय भावना और सामान्य जनजीवन की घटनाओं से परिपूर्ण है। इनका निधन सन् 1936 ई0 में हुआ। आशा करता हूँ कि आपको यह ईदगाह कहानी हिंदी, मुंशी प्रेमचंद की कहानी: ईदगाह, ईदगाह' कहानी हिंदी Class 8, idgah story in hindi , Idgah story by Munshi Premchand in hindi जरुर पसंद आई होगी

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