Haar Ki Jeet Story by Sudarshan | हार की जीत कहानी

 नमस्कार दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम Haar Ki Jeet Story by Sudarshan | हार की जीत कहानी लेकर आये हैं प्रस्तुत कहानी में एक डाकू के हृदय परिवर्तन की घटना को बड़े ही भावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया गया है। तो आइये बिना देरी के इस पोस्ट कि शुरुवात करते हैं और पढ़ते हैं हार की जीत कहानी PDF, हार की जीत कहानी का सारांश, haar ki jeet kahani, हार की जीत कक्षा 6, हार की जीत कहानी सुदर्शन, Haar ki Jeet Kahani ka Saransh

Haar Ki Jeet Story by Sudarshan | हार की जीत कहानी

हार की जीत कहानी सुदर्शन: माँ को अपने बेटे और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनन्द आता है, वही आनन्द बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था। भगवद्भजन से जो समय बचता वह घोड़े को अर्पण हो जाता। वह घोड़ा बड़ा सुन्दर व बलवान था। इसके जोड़ का घोड़ा सारे इलाके में न था। बाबा भारती उसे "सुल्तान" कह कर पुकारते, अपने हाथ से खरहरा करते, खुद दाना खिलाते और देख-देखकर प्रसन्न होते थे।

उन्हांने रुपया, माल, असबाब, जमीन आदि अपना सब-कुछ छोड़ दिया था, यहाँ तक कि उन्हें नगर के जीवन से भी घृणा थी। अब गाँव से बाहर एक छोटे से मन्दिर में रहते और भगवान का भजन करते थे। "मैं सुल्तान के बिना नहीं रह सकूँगा," उन्हें ऐसी भ्रान्ति-सी हो गयी थी। वे उसकी चाल पर लट्ट थे। कहते ऐसा चलता है जैसे मोर घटा को देख कर नाच रहा हो। जब तक सन्ध्या समय सुल्तान पर चढ़ कर आठ-दस मील का चक्कर न लगा लेते, उन्हें चैन न आता।

खड्गसिंह उस इलाके का प्रसिद्ध डाकू था। लोग उसका नाम सुनकर काँपते थे। होते- होते सुल्तान की कीर्ति उसके कानों तक भी पहुँची। उसका हृदय उसे देखने के लिए अधीर हो उठा। वह एक दिन दोपहर के समय बाबा भारती के पास पहुँचा और नमस्कार करके बैठ गया

बाबा भारती ने पूछा 'खड्गसिंह क्या हाल है?'
खड्गसिंह ने सिर झुका कर उत्तर दिया, 'आपकी दया है।'
'कहो, इधर कैसे आ गयो'
'सुल्तान की चाह खींच लायी।'
'विचित्र जानवर है। देखोगे तो प्रसन्न हो जाओगे।'
'मैंने भी बड़ी प्रशंसा सुनी है।'
'उसकी चाल तुम्हारा मन मोह लेगी।'
'कहते हैं, देखने में भी बड़ा सुन्दर है।'
'क्या कहना जो उसे एक बार देख लेता है, उसके हृदय पर उसकी छवि अंकित हो जाती है।'

'बहुत दिनों से अभिलाषा थी, आज उपस्थित हो सका हूँ।'
बाबा भारती और खड्‌गसिंह अस्तबल में पहुँचे। बाबा ने घोड़ा दिखाया घमण्ड से, खड्गसिंह ने घोड़ा देखा आश्चर्य से उसने सहस्रों घोड़े देखे थे परन्तु ऐसा बाँका घोड़ा उसकी आँखों से कभी न गुजरा था। सोचने लगा, भाग्य की बात है। ऐसा घोड़ा खड्गसिंह के पास होना चाहिए था।

इस साधु को ऐसी चीजों से क्या लाभ कुछ देर तक आश्चर्य से चुपचाप खड़ा रहा। इसके पश्चात उसके हृदय में हलचल होने लगी। बालकों की-सी अधीरता से बोला, 'परन्तु बाबाजी, इसकी चाल न देखी तो क्या?'
बाबा जी मनुष्य ही थे। अपनी वस्तु की प्रशंसा दूसरे के मुख से सुनने के लिए उनका
हृदय अधीर हो गया। घोड़े को खोलकर बाहर गये। घोड़ा वायुवेग से उड़ने लगा।

उसकी चाल देखकर खड्गसिंह के हृदय पर साँप लोट गया। वह डाकू था और जो वस्तु उसे पसन्द जा जाय उस पर वह अपना अधिकार समझता था। उसके पास बाहुबल था और आद‌मी थे। जाते-जाते उसने कहा, 'बाबाजी मैं यह घोड़ा आपके पास न रहने दूंगा।'

बाबा भारती डर गये। अब उन्हें रात को नींद न आती। सारी रात अस्तबल की रखवाली में कटने लगी प्रतिक्षण खड्गसिंह का भय लगा रहता परन्तु कई मास बीत गये और वह न आया। यहाँ तक कि बाबा भारती कुछ असावधान हो गये और इस भय को स्वप्न के भय की नई मिथ्या समझने लगे।

सन्ध्या का समय था। बाबा भारती सुल्तान की पीठ पर सवार होकर घूमने जा रहे थे। इस समय उनकी आँखों में चमक थी, मुख पर प्रसन्नता। कभी घोड़े के शरीर को देखते कभी उसके रंग को और मन में फूले न समाते थे।
सहसा एक ओर से आवाज आयी, 'ओ बाबा, इस कंगले की सुनते जाना।'

आवाज में करुणा थी। बाबा ने घोड़े को रोक लिया। देखा, एक अपाहिज वृक्ष की छाया में पड़ा कराह रहा है। बोले, 'क्यों, तुम्हें क्या कष्ट है?'

अपाहिज ने हाथ जोड़कर कहा, 'बाबा, मैं दुखिया हूँ। मुझ पर दया करो। रामावाला यहाँ से तीन मील है, मुझे वहाँ जाना है। घोड़े पर चढ़ा लो, परमात्मा भला करेगा।'
'वहाँ तुम्हारा कौन है?'

'दुर्गादत्त वैद्य का नाम सुना होगा। उनका सौतेला भाई हूँ।'
बाबा भारती ने घोड़े से उतर कर अपाहिज को घोड़े पर सवार किया और स्वयं उसकी लगाम पकड़ कर धीरे-धीरे चलने लगे।

सहसा उन्हें एक झटका-सा लगा और लगाम हाथ से छूट गयी। उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, जब उन्होंने देखा कि अपाहिज घोड़े की पीठ पर तन कर बैठा है और घोड़े को दौड़ाये लिये जा रहा है। उनके मुख से भय, विस्मय और निराशा से मिली हुई चीख निकल गयी। वह अपाहिज डाकू खड्ग सिंह था।

बाबा भारती कुछ देर तक चुप रहे और इसके पश्चात कुछ निश्चय करके पूरे बल से चिल्लाकर बोले, 'जरा ठहर जाओ।'
खड्ग सिंह ने आवाज सुनकर घोड़ा रोक लिया और उसकी गर्दन पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा, 'बाबाजी, यह घोड़ा अब न दूँगा।'

'परन्तु एक बात सुनते जाओ।'
खड्गसिंह ठहर गया। बाबा भारती ने निकट जाकर उसकी ओर ऐसी आँखों से देखा जैसे बकरा कसाई की ओर देखता है, और कहा, 'यह घोड़ा तुम्हारा हो चुका। मैं तुमसे वापस करने के लिए न कहूँगा। परन्तु खड्गसिंह, केवल एक प्रार्थना करता हूँ। उसे अस्वीकार न करना, नहीं तो मेरा दिल टूट जायेगा।'

बाबा जी आज्ञा कीजिए। मैं आपका दास हूँ, केवल यह घोड़ा न दूँगा।
'अब घोड़े का नाम न लो। मैं तुमसे इसके विषय में कुछ न कहूँगा। मेरी प्रार्थना केवल यह है कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना।'

खड्गसिंह का मुँह आश्चर्य से खुला रह गया। उसका विचार था कि उसे घोड़े को लेकर यहाँ से भागना पड़ेगा, परन्तु बाबा भारती ने स्वयं कहा कि 'इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना।' इससे क्या प्रयोजन सिद्ध हो सकता है। खड्गसिंह ने बहुत सोचा, बहुत सिर मारा, परन्तु कुछ समझ न सका। हारकर उसने अपनी आँखें बाबा भारती के मुख पर गड़ा दी और पूछा, 'बाबा जी इसमें आपको क्या डर है?'

सुनकर बाबा भारती ने उत्तर दिया 'लोगों को यदि इस घटना का पता चल गया तो वे किसी गरीब पर विश्वास न करेंगे।' यह कहते-कहते उन्होंने सुल्तान की ओर से इस तरह मुँह मोड़ लिया जैसे उनका उससे कोई सम्बन्ध ही नहीं रहा हो।
बाबा भारती चले गये, परन्तु उनके शब्द खड्गसिंह के कानों में उसी प्रकार गूंज रहे थे। सोचता था, कैसे ऊँचे विचार हैं, कैसा पवित्र भाव है। उन्हें इस घोड़े से प्यार था, इसे देखकर उनका मुख फूल की नाई खिल जाता था।

कहते थे, 'इसके बिना मैं न रह सकूँगा।' इसकी रखवाली में वे कई रात सोये नहीं। भजन-भक्ति न कर, रखवाली करते रहे। परन्तु आज उनके मुख पर दुःख की रेखा तक न दिखायी पड़ती थी। उन्हे केवल यह ख्याल था कि कहीं लोग गरीबों पर विश्वास करना न छोड़ दें। ऐसा मनुष्य, मनुष्य नहीं देवता है।

रात के अन्धकार में खड्गसिंह बाबा भारती के मन्दिर में पहुँचा। चारों ओर सन्नाटा था। आकाश में तारे टिमटिमा रहे थे। थोड़ी दूर पर गाँवों के कुत्ते भौंक रहे थे। मन्दिर के अन्दर कोई शब्द सुनायी न देता था। खड्गसिंह सुल्तान की बाग पकड़े हुए था। वह धीरे-धीरे अस्तबल के फाटक पर पहुँचा। फाटक खुला पड़ा था। किसी समय वहाँ बाबा भारती स्वयं लाठी लेकर पहरा देते थे, परन्तु आज उन्हें किसी चोरी, किसी डाके का भय न था। खड्गसिंह ने आगे बढ़कर सुल्तान को उसके स्थान पर बाँध दिया और बाहर निकल कर सावधानी से फाटक बन्द कर दिया। इस समय उसकी आँखों में नेकी के आँसू थे।

रात्रि का तीसरा पहर बीत चुका था। चौथा पहर आरम्भ होते ही बाबा भारती ने अपनी कुटिया से बाहर निकल ठंडे जल से स्नान किया। उसके पश्चात इस प्रकार जैसे कोई स्वप्न में चल रहा हो, उनके पाँव अस्तबल की ओर बढ़े। परन्तु फाटक पर पहुँचकर उनको अपनी भूल प्रतीत हुई साथ ही घोर निराशा ने पाँवों को मन-मन भर का भारी बना दिया। वे वहीं रुक गये।

घोड़े ने अपने स्वामी के पाँवों की चाप को पहचान लिया और जोर से हिनहिनाया।

अब बाबा भारती आश्चर्य और प्रसन्नता से दौड़ते हुए अन्दर घुसे और अपने प्यारे घोड़े के गले से लिपट कर इस प्रकार रोने लगे मानो कोई पिता बहुत दिन के बिछुड़े हुए पुत्र से मिल रहा हो। बार-बार उसकी पीठ पर हाथ फेरते, बार-बार उसके मुँह पर थपकियाँ देते।
फिर वे सन्तोष से बोले, 'अब कोई गरीबों की सहायता से मुँह न मोड़ेगा।'

Haar ki Jeet Kahani ka Saransh | हार की जीत कहानी का सारांश

लेखक सुदर्शन की 'हार की जीत' काफी प्रभावपूर्ण कहानी है। इसका सारांस इस प्रकार है बाबा भारती का अपने घोड़े से लगाव-जिस प्रकार एक माँ को अपने स्वस्थ बेटे को देखकर आनन्द मिलता है, ठीक उसी प्रकार बाबा भारती को अपने सुलतान घोड़े को देखकर मिलता था। उनको धन-दौलत से कोई मोह नहीं था, परन्तु वे अपने घोड़े को बहुत चाहते थे और उसकी पूरी देखभाल करते थे।

इस कहानी में लेखक ने डाकू खड़गसिंह, बाबा भारती और सुल्तान के माध्यम से हमें यह संदेश दिया है कि हमें असहाय और दींन हीन लोगो कि हमेशा सहायता करना चाहिए लेखक ने इसमें जब बाबा भारती को डाकू खड़गसिंह अपाहिज बनकर उनका घोडा छीन लेता है तो बाबा भारती उससे इस घटना का जिक्र किसी से भी ना करने बात कहते हैं।

डाकू खड़गसिंह जब इसका कारण पूछता है तो वो कहते हैं कि यदि वह इस बात को किसी से कहेगा तो लोग किसी असहाय कि सहायता नहीं करेंगे जिसे सुनकर डाकू खड़गसिंह का ह्रदय परिवर्तन होता है और वह रात को सुलतान घोड़े को अस्तबल में बाँध कर चला जाता है

लेखक: सुदर्शन

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FAQ: Haar Ki Jeet Story by Sudarshan

Q: हार की जीत किसकी कहानी है?

ANS: हार की जीत कहानी हिंदी के सुपरिचित कहानीकार सुदर्शन जी कि है

Q: हार की जीत कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

ANS: इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में हमें किसी भी चीज को पाने के लिए किसी के विश्वास को नहीं तोड़ना चाहिए

Q: हार की जीत कहानी में किसका हृदय परिवर्तन हो जाता है?

ANS: हार की जीत कहानी में डाकू खड्गसिंह का हृदय परिवर्तन होता है

Q: बाबा भारती के घोड़े का नाम क्या था?

ANS: बाबा भारती के घोड़े का नाम सुलतान था

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